मन के रोगी करते मन की Read Count : 533

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मन के रोगी करते सदा ही मन की बात 
मुस्काकर छुपाते है नाखुन और दात ।।
  
बातें उनकी लंबी लंबी लगती जैसे छांव 
पर रातमें दिया बुझाए डुबाते जीवन की नाव
सोचों यारों जीवन में आयी क्यों कैसे काली रात ।

आम जनता के हक को रौंदे पिठपर करते वार
पांच किलो राशन और देते दाल तेल की धार
मस्त रहो तुम गालों गाना कर लो उनका साथ ।

अपने पैरोंपर मार लो कुल्हाडी करके चापलुसी
इतिहास में लिखा जायेंगा नाकारा और बदमाशी 
रंगीन सपने देख दिखाकर  कटा लो अपना हाथ ।

सच तो ये वक्त है मिलजुकर आगे बढ़ने का
संसार को सुन्दर सुखमय सुजल सुफल बनाने का
लेकिन पाखंडी शासन में छुपकर करते है घात।

मजलुमों गरिबों एक हो जाओ खोलकर अपनी आंखें 
अर्बन नक्सल के बहाने तैयार है तुम्हारे लिए सलांखें
पर ना घबराना खुद की मानना खोने के लिए क्या है तुम्हारे पास।
पर ना घबराना तुम भविष्यके वास्ते कर लो दो दो हात।

स्वार्थ में होकर अंधा मत खालो उनका दिया हुवा खरबुजा 
उनके मनमें क्या है समझलो हो सकता है कोई भाव है दुजा 
अपने दम पर लालो तुम लढकर पढकर अधिकारोंकी सौगात ।

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