त का घाटा मेहरारू से Read Count : 9

Category : Poems

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बड़ा मनउली देवता पित्तर ।
मेहरी चाही हमें पवित्तर ।
हमरो सपना साच भइल बा ।
पूरा मोर बनवास भइल बा ।
बहुते सपना जोड़ले बानी ।
मन क सिकहर तोड़ले बानी ।
गुस्साईब खिसियाईब खूबे
चिखब नीमक तारु से,
त का घाटा मेहरारू से ।

जब जब हमरो माथ पिराई ।
सरसो अजवाइन ओंईछाई ।
घीव से छंउकल दाल मिली ।
जब भात में ओकर बाल मिली ।
तब करब शिकायत साढ़ू से,
त का घाटा मेहरारू से

बइठ के हमहू गाल बजाइब ।
पथरे पर हम दुब उगाईब ।
बदलल हमरो चाल मिली ।
तब फुलल पचकल गाल मिली ।
तू जाके पूछा सोमारु से,
त का घाटा मेहरारू से ।

गांव क मनई गांव नियन बस ।
हमरो धनिया छाँव नियन बस ।
केतनन के हम देखले बानी ।
साल खांड़ क राजा रानी ।
झगड़ा, मूसर - झाड़ू से,
त का घाटा मेहरारू से ।

~ धीरेन्द्र पांचाल

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