
इक देवी ने इस दिल को द
Read Count : 4
Category : Poems
Sub Category : N/A
मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
काश की मिल पाता मैं उनसे
हाल दिलों के गाता
काश की इस बंजर धरती पर
अपने रंग उगाता
उसकी कातिल आँखों ने फिर हमपे रोब उछाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
उसका मिलना लगा की जैसे
नदियों के तट अम्बर
जैसे अपनी मंजिल को
पा लेता कोई सिकंदर
उसकी ख़ामोशी ने मुझमें मधुशाला भर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
उसके कांधे पर सर रख
उसकी धड़कन सुन पाऊं
वो मेरी होकर रह जाये
मैं उसका हो जाऊं
उसने मेरे सूने दिल में किलकारी भर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
उसकी अंगड़ाई से जैसे
थम जाती पुरवाई
थम जाती हो जैसे
जाने कितनों की तरुणाई
मैंने पूजा उसको जैसे पूजे कोई शिवाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
~ धीरेन्द्र पांचाल
Comments
- No Comments

