ये दलालोंका दौर है... Read Count : 87

Category : Poems

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ये दलालोंका दौर है लढने चल
साथी , शत्रू बेशुमार है लढने चल ।।धृ।।

पगपग पर बैठे है  लोमडी सियार
दुकाने खोल बैठे है दारुके ठेकेदार 
रंगोंमे रंग मिलते ; पर तू इनमें मत ढल ।

       अभी तू बदनाम होगा शहरी नक्सली कहलायेगा
        गांव  शहरोंमें  रहकर तू  सलाखोंकी हवा खायेगा 
       तेरी पुश्ते पुछेगी तो तेरा जवाब क्या होगा कल?

 कल जैसे तेरा  था जिना मरमरकर ऐसाही औलादोंका होगा
हक मांगने जायेंगे  तो नक्सली कहकर मार दिया जायेगा 
मेहनत बच्चोकी खातीर करते हो तो आज मकानोंसे निकल ।

     चंद दलालोंने तेरी दुनिया खतरेंमें डाली है
     चुनके दिया जिनको तुने ओ बने मवाली है
     देश का पहरेदार गुंगा , सबकुछ हो रहा महंगा, 
     ढह जायेगा एक दिन जो तुने बनाया महल ।

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