
तलाश
Read Count : 79
Category : Poems
Sub Category : N/A
एक तलाश है कि
क्या तलाश है मुझें
कभी ...
खुद को देखता
और महसूस करता हु
अपने ही विचारों में
भावों के समंदर में
कुछ तलाश कर रहा हू
बहुत कुछ देखता हु वहां
क्या है क्या नहीं देख कर भी
एहसास नहीं है मुझे
आख़िर एक तलाश है
कि क्या तलाश है मुझे !
चलता हु बिन चाह के
कभी ठहर सा जाता हूँ
कभी ख़ामोश तो कभी मै
ख़ुद ही बोल जाता हूँ
कभी भीड़ में भी अकेले
कभी मन में भीड़ होती है
जंगल ये मन है कभी
कभी शहर ये हो जाती है!
कभी दर्द ख़ुद का भूल कर
खुशियाँ तलाश लेता हू
कभी मन के दौड़ में रहुँ
तो जग को भूल जाता हू
स्वार्थ भरे जग में कभी
निराशा हो जाती है मुझें !
एक तलाश है कि
क्या तलाश है मुझें !!
(Tarun)