बेजुबान Read Count : 120

Category : Poems

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बेजुबानों को बचाने की गजब साजिश चली  ,
देखकर व्यापार मरघट को पसीना आ गया ।

देखते ही देखते तकनीक ऐसी आ गई ,
छेदकर नथुनों को हमको दूध पीना आ गया ।

हो गए हैं बन्द बूचड़खाने जो अवैध थे ,
वैध वाले हंस रहे हैं क्या जमाना आ गया ।

ये औरंगजेब के दुश्मन मोहब्बत गाय से इनको ,
सियासी रंग ऐसा देखकर बछड़ों को रोना आ गया ।

बगावत कर नहीं सकता सियासी भेड़ियों से मैं ,
सूखती गंगा में भी हमको नहाना आ गया ।

~ धीरेन्द्र पांचाल

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