बेजुबान
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Category : Poems
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बेजुबानों को बचाने की गजब साजिश चली ,देखकर व्यापार मरघट को पसीना आ गया ।देखते ही देखते तकनीक ऐसी आ गई ,छेदकर नथुनों को हमको दूध पीना आ गया ।हो गए हैं बन्द बूचड़खाने जो अवैध थे ,वैध वाले हंस रहे हैं क्या जमाना आ गया ।ये औरंगजेब के दुश्मन मोहब्बत गाय से इनको ,सियासी रंग ऐसा देखकर बछड़ों को रोना आ गया ।बगावत कर नहीं सकता सियासी भेड़ियों से मैं ,सूखती गंगा में भी हमको नहाना आ गया ।~ धीरेन्द्र पांचाल
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