नए मन का भाव Read Count : 89

Category : Poems

Sub Category : N/A
ख़ुद को यूँ बाँधु कि 
कहीं बिखर ना सकू 
किसी की बातों और 
जज़्बातों को दिल पे ना ले सकूँ !

बुझाना चाहता हु अब 
भावों का वो दीप जो है मन में 
ताकि इसके रोशनी की चाह 
ना रहे किसी के मन में !

एक शून्य सा हो मन का तला 
कुछ नये धुनों को सजा सकूँ 
वो आवाज़ जो ख़ुद ही सुनु 
ख़फ़ा ना किसी को कर सकूं !




Comments

  • No Comments
Log Out?

Are you sure you want to log out?