नए मन का भाव
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Category : Poems
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ख़ुद को यूँ बाँधु कि
कहीं बिखर ना सकू
किसी की बातों और
जज़्बातों को दिल पे ना ले सकूँ !
बुझाना चाहता हु अब
भावों का वो दीप जो है मन में
ताकि इसके रोशनी की चाह
ना रहे किसी के मन में !
एक शून्य सा हो मन का तला
कुछ नये धुनों को सजा सकूँ
वो आवाज़ जो ख़ुद ही सुनु
ख़फ़ा ना किसी को कर सकूं !
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