गुनहगार Read Count : 110

Category : Poems

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मै गुनेहगार हूँ 
क्योंकि मै एक मददगार हूँ ,
खता इतनी सी थी कि 
किसी को परेशां ना होने पड़े 
खुद से कि इतना तो समझदार हूँ !


कई अरसे से लगता था कि 
खूबसूरत होती है महोब्बत 
आज जानें क्यों ,
किसी की नफऱत से मुहोब्बत हो गयीं !

आज आरजू है कि कोई 
जी भरके नफ़रत करे 
ताकि उसकी पनाह में 
मै जी भरके सो सकूँ !

आज क्यों ऐसा लगता है की 
सुकून बेच आया हूँ कहीं ,
किसी को थोड़ी सी सहारा  देकर 
खुद बेसहारा सा हो गया हूँ  कहीं !

                         (Tarun)

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