
गुनहगार
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Category : Poems
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मै गुनेहगार हूँ
क्योंकि मै एक मददगार हूँ ,
खता इतनी सी थी कि
किसी को परेशां ना होने पड़े
खुद से कि इतना तो समझदार हूँ !
कई अरसे से लगता था कि
खूबसूरत होती है महोब्बत
आज जानें क्यों ,
किसी की नफऱत से मुहोब्बत हो गयीं !
आज आरजू है कि कोई
जी भरके नफ़रत करे
ताकि उसकी पनाह में
मै जी भरके सो सकूँ !
आज क्यों ऐसा लगता है की
सुकून बेच आया हूँ कहीं ,
किसी को थोड़ी सी सहारा देकर
खुद बेसहारा सा हो गया हूँ कहीं !
(Tarun)
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