निरंकुश Read Count : 153

Category : Poems

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निरंकुश होकर निकल पड़ा, 
कुटिल मुस्कान बिखेरकर, 
विजय गाथा लिखने की जिद में, 
एकतरफा राह पकड़कर, 
मानवता को रखा किनारे, 
औरों की बोली क्या होगी, 
दायित्व दबाव में जनता पागल, 
नित नये सुबह की धीर धरे, 
रोजगार की किल्लत देखो, 
अब हृदय की मंशा क्या होगी, 
अहम् की काल कोठरी में, 
प्रकाशपुंज बहुत जरुरी है, 
कश्तूरी नाभि की दिखी नहीं, 
मृगमरीचिका की कीमत क्या होगी, 
ये प्रजातंत्र है लोक तंत्र है, 
सभी स्वतंत्रत हैं, हो एक तंत्र, 
सबको समुचित अधिकार मिले, 
मॅहगाई की पड़ती मार तो देखो, 
जन-मानस की कीमत क्या होगी, 
नारीशक्ति को अधिकार मिले, 
अत्याचारों से लड़ने को, 
गांव-शहर की बेटियां हों बेखौफ़, 
आंगन की अपने शान बनें, 
हुआ न ऐसा समाज हमारा, 
फिर मानवता की कीमत क्या होगी 
समरसता और भाईचारा, 
जब एक सूत्र में बंधे नहीं, 
'पागल पथिक' के रात-दिन, 
जगने की कीमत क्या होगी...

🌷VK Pasवान 🌷

Comments

  • pl comments

    Feb 16, 2022

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