सुख देने का संस्कार Read Count : 115

Category : Poems

Sub Category : N/A
*सुख देने का संस्कार*

मन की धरा क्यों है आखिर, इतनी शुष्क तुम्हारी
दिल की तिज़ोरी पर, क्यों लगाई इतनी पहरेदारी

रखते हो ऐसी चाहत कि, सबकुछ मैं पाता जाऊं
देना पड़े थोड़ा सा भी, तो खुद को पीछे मैं हटाऊं

ऐसा लालच अपने अन्दर, किसलिए तुमने पाला
निकल गया है शायद तेरी, बुद्धि का पूरा दिवाला

स्वार्थी को दिखता नहीं, अपने सिवाय कोई और
कभी ना मिलता उसको, जीवन में शांति का ठौर

सबकुछ पाकर भी, मन से खाली ही रह जाएगा
लेने में उतना सुख नहीं, जितना देने में तू पाएगा

त्यागकर स्वार्थीपन तू, सोच ले औरों का फायदा
लाभ तुझे भी होगा जब, तू अपनाएगा ये कायदा

जीवन में सुख शांति का, अनुभव तब ही पाएगा
औरों को सुख देने का जब, तू संस्कार जगाएगा

*ॐ शांति*

*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*

Comments

  • No Comments
Log Out?

Are you sure you want to log out?