लड़की Read Count : 108

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एक लड़की सहमी सी,घबराई सी रहती थी,
एक अजीब सा शून्य उसके चेहरे पे झलकता ,
शायद वह किसी कि तलाश मे थी या शायद खुद की ही तलाश मे,
खुद से ही लड़ती , खुद से ही झगड़ती ,
खुद के मन मे हज़ारों प्रश्न लिए इस दुनिया की भीड़ मे चलती ,
एक खोई हुई  पन्छी अपनी मंज़िल की तलाश मे भटकती ,
अपने मन के शुन्य को पूरा करने अक्सर  गैरो को रिझाती ,
जो उसे अपने लगते अक्सर वो ही उसपर वार करते,
ठोकर खा-खा के उसने चलना तो सीख लिया ,
इस जालिम दुनिया में अपने लिए लड़ना तो सीख लिया,
कुछ ना  सीख पाई कभी वो तो किसी का दिल तोड़ना ,
उसकी मुस्कान बताती उसके मन मे दर्द कितना,
जज्बात भरे मन  से बाहर तो बहुत शोर करती,
लेकिन अंदर वह एकदम मौन  और नीरस सा जीवन जीती ,
जिसकी भनक दुनिया को तो ना होने देती , 
खुद को ही उसे हराना है यह वादा उसने खुद से किया था,
यह विश्वास लिए अपने मन मे आशा का दीप जलाती थी।
                                                                      
                                                               - प्रतिज्ञा 

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