छोटी-सी ज़िंदगी Read Count : 127

Category : Poems

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हमें हर चीज़ नई चाहिए,
खाना हो, कपड़े हों, मकान हो,
गाड़ी हो या कोई सामान हो,
पर रिश्ते पुराने ढोने के आदी हो चुके हैं,
क्योंकि उसके साथ 
संस्कार है, जाति है, धर्म है, 
वर्ग है, समाज है,
प्रदेश है, देश है,
तमाम बंधनों के उलझाव हैं,
और छोटी-सी ज़िंदगी इन्हीं से शुरू
और इन्हीं पर खत्म हो जाती है।।




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