वक़्त Read Count : 122

Category : Poems

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बीत रहा है वक़्त धीरे धीरे ,
बदल रहे हैं जज़्बात धीरे धीरे,
कोई ठहराव नही.. न है ठंडी छांव पीपल की
यादें सिमट रही हैं , यहां धीरे धीरे

शांत सा है समा , हर पल चुप सा है
मेरा मन इन वादियों में कहीं गुम सा है,

दूर निकल गया है कहीं हवाओं के साथ..
शायद मैं नहीं हूं मुझमें.. बस मेरा अंत सा है ,

कहीं दूर लंबी रातों में , वो सुकूं सी बरसात,
जब धीरे से मन करता है घटाओं से अपनी बात ,
कहते सुना था मैने उसको.. "बदल गया है वो" ,
वो अपना वजूद पाकर करेगा .. फिर में अपनी तलाश ,

वो वापस आएगा एक लंबे वक़्त के बाद..
नई उमंग , सुकून और थोड़े ठहराव के साथ ,

जो इन भीड़ भाड़ वाली गलियों में भी सुकून ढूंढ सके ,
जो घृणा में भी मोहब्बत का बीज बो सके ,
जो कर सके प्रेरित सबको मनुष्यता को लेकर
जो ला सके मुस्कान गलियों कूचों के भीतर ,

वो वापस आएगा एक लंबे वक्त के बाद
थोड़ा ठहराव और थोड़ी खुशियों के साथ.!!!

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