
वक़्त
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Category : Poems
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बीत रहा है वक़्त धीरे धीरे ,बदल रहे हैं जज़्बात धीरे धीरे,कोई ठहराव नही.. न है ठंडी छांव पीपल कीयादें सिमट रही हैं , यहां धीरे धीरेशांत सा है समा , हर पल चुप सा हैमेरा मन इन वादियों में कहीं गुम सा है,दूर निकल गया है कहीं हवाओं के साथ..शायद मैं नहीं हूं मुझमें.. बस मेरा अंत सा है ,कहीं दूर लंबी रातों में , वो सुकूं सी बरसात,जब धीरे से मन करता है घटाओं से अपनी बात ,कहते सुना था मैने उसको.. "बदल गया है वो" ,वो अपना वजूद पाकर करेगा .. फिर में अपनी तलाश ,वो वापस आएगा एक लंबे वक़्त के बाद..नई उमंग , सुकून और थोड़े ठहराव के साथ ,जो इन भीड़ भाड़ वाली गलियों में भी सुकून ढूंढ सके ,जो घृणा में भी मोहब्बत का बीज बो सके ,जो कर सके प्रेरित सबको मनुष्यता को लेकरजो ला सके मुस्कान गलियों कूचों के भीतर ,वो वापस आएगा एक लंबे वक्त के बादथोड़ा ठहराव और थोड़ी खुशियों के साथ.!!!
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