पिताजी Read Count : 133

Category : Poems

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आज भी शाम को आपको फ़ोन करने का मन करता है
आज भी दोपहर को खाने पर इंतेज़ार रहता है

घर सूना है, घास भी बढ़ गई है,
कुर्सी पर साफ तौलिया लगवाया है,
सबको मालिक के आने की आस है

सब्जी में तेल ज्यादा है
मसाला भी तेज है
पर अब किसी के डांटने की आवाज़ नही आती

कमरा आज भी तितर बितर ही है
किताबें और फाइले वैसे ही पड़ी है
उनको भी किसी के आने का अहसास है

ऐसे तो जाने की उम्मीद न थी
आप ही सब कुछ थे
यही सोच कुछ दिन और रुक गए होते।

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