खाला खिचड़ी ए बबुआ
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Category : Poems
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ससुरा के माड़ो के तू ही चनरमा ।।मुँहवा फुलाय बाबू जईबा कहाँ ।खाला खिचड़ी ए बबुआ खईबा कहाँ ।बाथे कपार कहा मरचा घुमा दीं ।गरमी लगत बा त बेना डोला दीं ।साली सढ़ूआईन सब तोहे समझावे ,खोदी सरहज त बबुआ लुकईबा कहाँ ।खाला खिचड़ी ए बबुआ खईबा कहाँ ।काहें खिसियाईल बाड़ा बोला तू हाली ,सईकिल आ सिकड़ी के बात रहे खाली ,हमनी के अइसे अँउजल जनि करा,ना त मूसर के घुसर पचईबा कहाँ ।खाला खिचड़ी ए बबुआ खईबा कहाँ ।खाला हाली हाली तोहे अँगूठी पहिराय देब ।हथवा के खातिर एगो घड़ियो मँगाय देब ।सास ससुर बईठ सब तोहके मनावे ,बाबू होखी निरदईया जईबा कहाँ ।खाला खिचड़ी ए बबुआ खईबा कहाँ ।ससुरा के माड़ो के तू ही चनरमा ।।मुँहवा फुलाय बाबू जईबा कहाँ ।खाला खिचड़ी ए बबुआ खईबा कहाँ ।✍️ धीरेन्द्र पांचाल
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