ख़्याल...शाम का Read Count : 145

Category : Poems

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शाम का ख़्याल
अक्सर शाम की तरह ही होता है,
धीरे से आता है
और फिर यूं ही
धीरे धीरे रात में समा जाता है,
शाम का ख़्याल 
अक्सर शाम की तरह ही आता है।


दिन भर की कड़ी धूप,
जद्दोजहद,
माथापच्ची,
और
अफरातफरी
के बाद 
ज्यों ही, 
शाम की किरणे अपनी लालिमा बिखेरती है
त्यों ही उसकी ठंडक की थाप लिए 
एक ख़्याल मन में आता है,
कुछ देर मन रुक कर 
अधरों की चुप्पी तोड़
एक मुस्कान दे जाता है,
शाम का ख़्याल,
अक्सर शाम की तरह ही आता है।

झूमती शाम जब,
रात से मिलने 
आतुर हो उठती है
ठीक तभी 
ये ख़्याल भी
हमसे विदा ले 
अगले दिन की शुरुआत का 
ख़्याल छोड़ जाता है 
शाम का ख़्याल
अक्सर शाम की तरह ही आता है। 

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