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Sub Category : Spirituality
              एक सफर ख्वाईशो का ऐसा भी
जब हम सब छोटे थे तो ख्वाईशो से हमारा रिश्ता अनोखा था , कभी चांद को आसमा से धरती पे लाने की ख्वाईश तो कभी खुद परिंदो की तरह बन कर सारा आसमा घूम आने की ख्वाईश 
अकेले से कितना डरते थे लेकिन फिर भी अंजान रास्तों पर बस खुद की बनाई गाड़ी से सफर घूम आने की ख्वाईश भला किसने नि देखी होगी
मानसून की बारिश की बूंदों में घर की चार दिवारी से बाहर निकल के अपने साथियों के साथ एक चक्कर पूरा गांव का मार के आने की ख्वाईश कितनी सुकून भरी रहती थी
बारिश के पानी में बनाई कागज की कस्ती में बैठने कर रोमांचित सफर का आनद लेने की ख्वाईश वैसे कुछ भी कहो बचपन था तो हमारा ख्वाईशो का सफर कितना सुकून भरा होता था
वैसे अब भी कहा हम ख्वाईशो से हम दूर हैं बस उनका रूप बदल गया हैं
वैसे अब तो अपनी आजादी ही हमारी सबसे बड़ी ख्वाईशो में से एक होती हैं
वैसे उम्र के साथ सब बदलता हैं पर अपना दिल वो हमेशा एक छोटे बच्चे की तरह ख्वाईशो से हमेशा रूबरू होता हैं
चाहे वो छोटे बच्चो को क्रिकेट खेलता देखते हुए अपने आप को नहीं रोक पाना हो , या अपनी मां की गोद में दो लम्हा बैठ कर बेहिसाब बाते करने की ख्वाईश
या आज भी अपनी दादी के मुंह से पुराने किस्सो को सुनने ख्वाईश , 
वैसे किसी ने सच कहा हैं ख्वाईशे समय की मोहताज नि  होती हैं बस इनकी सुनने वाला दिल आज भी जवा होना चाहिए

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