Writing 104
Read Count : 140
Category : Articles
Sub Category : Spirituality
एक सफर ख्वाईशो का ऐसा भीजब हम सब छोटे थे तो ख्वाईशो से हमारा रिश्ता अनोखा था , कभी चांद को आसमा से धरती पे लाने की ख्वाईश तो कभी खुद परिंदो की तरह बन कर सारा आसमा घूम आने की ख्वाईशअकेले से कितना डरते थे लेकिन फिर भी अंजान रास्तों पर बस खुद की बनाई गाड़ी से सफर घूम आने की ख्वाईश भला किसने नि देखी होगीमानसून की बारिश की बूंदों में घर की चार दिवारी से बाहर निकल के अपने साथियों के साथ एक चक्कर पूरा गांव का मार के आने की ख्वाईश कितनी सुकून भरी रहती थीबारिश के पानी में बनाई कागज की कस्ती में बैठने कर रोमांचित सफर का आनद लेने की ख्वाईश वैसे कुछ भी कहो बचपन था तो हमारा ख्वाईशो का सफर कितना सुकून भरा होता थावैसे अब भी कहा हम ख्वाईशो से हम दूर हैं बस उनका रूप बदल गया हैंवैसे अब तो अपनी आजादी ही हमारी सबसे बड़ी ख्वाईशो में से एक होती हैंवैसे उम्र के साथ सब बदलता हैं पर अपना दिल वो हमेशा एक छोटे बच्चे की तरह ख्वाईशो से हमेशा रूबरू होता हैंचाहे वो छोटे बच्चो को क्रिकेट खेलता देखते हुए अपने आप को नहीं रोक पाना हो , या अपनी मां की गोद में दो लम्हा बैठ कर बेहिसाब बाते करने की ख्वाईशया आज भी अपनी दादी के मुंह से पुराने किस्सो को सुनने ख्वाईश ,वैसे किसी ने सच कहा हैं ख्वाईशे समय की मोहताज नि होती हैं बस इनकी सुनने वाला दिल आज भी जवा होना चाहिए
Comments
- No Comments