ज़मीर बेचकर Read Count : 115

Category : Poems

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वो चैन से सो रहे है शहर बेचकर,
कोई ऑक्सीजन खरीद रहा है, घर के कागज़ बेचकर |

बाप ने पूरी उम्र गुज़ार दी मकान बनाने मे,
बेटा उसकी साँसे खरीद रहा, वही मकान बेचकर |

बर्बाद हो गए कई घर दवा खरीदने मे,
वो कमरा भर रहे है, ज़हर बेचकर |

महीने बीत गए बिस्तर के लिए दर-दर ठोकरे खाने मे,
वो तमाशा देख रहे है, अस्पताल बेचकर |

गरीब रो रहे है अपने-अपने मज़बूरी मे,
वो उनकी स्थिति पर हँस रहे है, उनके सुकून बेचकर |

एक इंच भी जगह नहीं है श्मशान मे,
फिर भी वो मौतें बाँट रहे है, खुद की ज़मीर बेचकर |

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