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वो पापा हैं
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Category : Poems
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मस्तक जिसका हिमगिरि जैसा ,आँखे झील हजार ।अधरों पर समरसता विहँसे ,शब्द-शब्द झंकार ।मैं जीतूं वह बने सिकन्दर , वो पापा हैं ।मेरे चुल्लू में जो भरे समंदर, वो पापा हैं ।फटी एड़ियों में अपने ,हर राज छुपाते हैं ।हम विचलित ना हो जाएं ,हंसकर बतियाते हैं ।रखते मुझको दिल के अंदर , वो पापा हैं ।मेरे चुल्लू में जो भरे समंदर, वो पापा हैं ।आशाओं से आकर मेरे ,हाथ मिलाते हैं ।इच्छाओं को झट से मेरे ,गले लगाते हैं ।मेरे बटुए में जो भरे मुक़द्दर , वो पापा हैं ।मेरे चुल्लू में जो भरे समंदर , वो पापा हैं ।✍️ धीरेन्द्र पांचाल
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