मेरे अल्फ़ाज़
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मेरे अल्फ़ाज़
उन्हें मालूम़ है हम उनको,कितना याद करते हैं,
पुरानी यादों का हम,एक बाज़ार रखते हैं।।तमन्ना है जो बेहोश सी,अब होश में लाएं कैसे,
मगर ये क्या है हरदम,वो ख़ामोश रहते हैं।अब मुलाक़ात का मोहताज़,नहीं हूं मैं उनसे,
मेरे अल्फ़ाज़ उनके दिल में,सीधे उतरते हैं।बहुत नाज़ुक था वो दौर,और नादाॅ थे हम तुम।
शिक़ायत कुछ नहीं है,फिर भी क्यों फ़रियाद करते हैं।उनके होने से भी,और उनसे भी ताल्लुक़ पुराना है,
चलो छोड़ो, ये किस्से हम बेबुनियाद़ करते हैं।उन्हें मालूम़ है हम उनको,कितना याद करते हैं,
पुरानी यादों का हम,एक बाज़ार रखते हैं।।०५-०२-२०२१ ~सतीश पन्त...✍️
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