आओ ना लौट चले बचपन के Read Count : 169

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बड़ी मुद्दतों बाद मैंने चंद पंक्तियाँ सजाए हैं, 
की वो बचपन की यादों की चार पंक्तियाँ रचाई है, 
  • की बचपन मे वो खेल हमारा जब सब मिलकर खेला करते थे, बेशक आज की तरह दो हाथों की दस उँगलियों मे पूरी दुनिया नहीं देख पाते थे,  पर बचपन की वो ख्वाब हमारे कहां मतलबी हुआ करते थे, वो बारिश के मौसम में काग़ज़ की कश्ती जब हमारे नन्हें सपनों को लेकर तैरती थी, सच बताना वो खुशी भी क्या कम हुआ करती थी! हमारी ख्वाहिशें BMW, मर्सिडीज, बेंज कहाँ हुआ करती थी! बस वो दो पहिया वाहन साईकिल ही हमारी सब कुछ हुआ करती थी!! वो बचपन आज भी याद आते हैं, ये व्यस्त जीवन आज भी हमें तड़पाते हैं!! ऐसा लगता है मानो  बहुत दूर सा आ गए है, अपनी ही जिंदगी से बिछड़ गए हैं! वो पैसे जुटा कर गेंद खरीद खेलने जाते थे हम सब,  आज जेब भरी है पैसों से पर खाली पड़ी दोस्ती की गुल्लक है, ना जाने कहाँ खो गए वो सब? शायद जिम्मेदारियों तले दब गए हैं अब सब..... आज भी याद आता है हर पल माँ की प्यार पापा का मार, फिर भी याद है अपना बचपन, आ लौट चले फिर वही वो काग़ज़ कश्ती और वो बचपन वाली मस्ती!! 
  • मैंने  सिर्फ चंद पंक्तियाँ लिखी है बचपन के दिनों को याद कर बहुत कुछ शेष रहें हैं जिन्हें आप याद करें आओ ना कुछ पल लौट चले बचपन के सुनहरे दिनों में!! 

Comments

  • agree withhh me??

    Jan 05, 2021

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