किधर छिपे प्रभु पास %E
Read Count : 99
Category : Poems
Sub Category : N/A
अभिलाषजीवन के मधु प्यास हमारे,छिपे किधर प्रभु पास हमारे?सब कहते तुम व्याप्त मही हो,पर मुझको क्यों प्राप्त नहीं हो?नाना शोध करता रहता हूँ,फिर भी विस्मय में रहता हूँ,इस जीवन को तुम धरते हो,इस सृष्टि को तुम रचते हो।कहते कण कण में बसते हो,फिर क्यों मन बुद्धि हरते हो ?सक्त हुआ मन निरासक्त पे,अक्त रहे हर वक्त भक्त पे ।मन के प्यास के कारण तुम हो,क्यों अज्ञात अकारण तुम हो?न तन मन में त्रास बढाओ,मेघ तुम्हीं हो प्यास बुझाओ।इस चित्त के विश्वास हमारे,दूर बड़े हो पास हमारे।जीवन के मधु प्यास मारे,किधर छिपे प्रभु पास हमारे?अजय अमिताभ सुमन