धरनि पै बैठे कृष्ण Read Count : 191

Category : Poems

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धरनि   पै   बैठे  कृष्ण, खेल  रहे  माटी  मै
कबहुँ   मचल   जात, कबहुँ   मुसुकाते  हैं। 
चहुँ   ओर   देख   रहे, नजरे  उठाई  कृष्ण 
काहु   नहीं   लखिकै, माटी  लै   खाते  हैं॥
माता ने  देखि  लिया, पूछ   रही  मोहन  ते
मुंह खोलि दिखाओं लाल, कृष्ण सकुचाते हैं।
जोई   स्वरुप  को, "वेद"  नहीं   ध्याई   सकै  
सोई मुख माहीं  निज,  माई  को लखाते हैं। 

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