
धरनि पै बैठे कृष्ण
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Category : Poems
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धरनि पै बैठे कृष्ण, खेल रहे माटी मैकबहुँ मचल जात, कबहुँ मुसुकाते हैं।चहुँ ओर देख रहे, नजरे उठाई कृष्णकाहु नहीं लखिकै, माटी लै खाते हैं॥माता ने देखि लिया, पूछ रही मोहन तेमुंह खोलि दिखाओं लाल, कृष्ण सकुचाते हैं।जोई स्वरुप को, "वेद" नहीं ध्याई सकैसोई मुख माहीं निज, माई को लखाते हैं।
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