चाय की प्याली Read Count : 82

Category : Poems

Sub Category : N/A
 हर सुबह तू और मैं कुछ पल साथ गुजारते हैं,
 कुछ हकीकत कुछ राज एक दूसरे से  बांटते हैं ,
 तू भी गरमा गरम कड़क होती है 
 मुझ में भी तुझे चखने की लालच होती है ।


 बड़े ही प्यार से तुझे बनाती हूं,
 फिर धीरे-धीरे  चंद् खयालों के साथ तुझे पी जाती हूं ।


 तेरा  अस्तित्व भी कुछ मेरे जैसा है,
 रोज बनते बिखरते रिश्ते जैसा है,
 तू भी  बेकार ,मैं भी  बेकार,
  सिर्फ बनाने वाले का है अधिकार ।


 तू भी तपति है आग में फिर बह जाती,
 मैं भी रिश्तो मे तप कर हर रोज रह जाती ।


 फिर भी बिना सवाल किए हर रोज प्याली में सज जाती
 वक्त के कांटों के साथ क्यों नहीं तू भी बदल जाती 
 जलती हूं  तुझसे कि तू कभी बूढ़ी ना होगी,
 फिर भी तेरी कहानी कभी पूरी ना होगी ।


 तेरी शक्ल में तेरी किस्मत का हाल देखती हूं,
 तुझे भी अपनी ही तरह बेहाल देखती हूं ।


  तुझे अपने कई राज़ बताए हैं मैंने,
 कुछ अनकहे पन्ने सुनाएं है मैंने,
 चुप रहेगी तू हमेशा मैं जानती हूं,
 तेरी फितरत इंसानों जैसी नहीं तुझे पहचानती हूं ।


 तुझे महसूस करती हूं ,तो मन और भी दुखी हो जाता है,
 मैं तो फिर भी बोल सकती हूं, तुझसे कहा बोला जाता है  ।


 जानती हूं मैं के अंदर ही अंदर तू  घुटती है,
 हर एक इंसान के होठों तले तेरी हस्ती मिटती  है ।
 खत्म होकर भी तू अपना असर दिखाती है,
 किसी के लिए जहर तो कभी किसी मर्ज की दवा बन जाती है  ।


 लोग तुझे याद अपने फायदे के लिए करते हैं,
 तेरी शक्ल पर नहीं तेरे असर पर मरते हैं ।


 यही तेरा सच है जो तू भी जानती है,
 तुझे पीने वाले की नियत को खूब पहचानती है ।
 अपना  सच जान के भी कुछ ना कर पाती है,
 मैं तो एक बार मरूंगी तू हर रोज मारी जाती है ।


 चल अब कल फिर मिलूंगी तुझसे,
 कुछ पल फिर साथ गुजारेंगे,
 कुछ  तेरे और कुछ मेरे राज़ ,
इन पन्नों पर उतारेंगे ।


                  - आयुषी  सिंघल

Comments

  • No Comments
Log Out?

Are you sure you want to log out?