
प्रश्न हमार
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Category : Poems
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हो गयल भवसागर जे पार , ताके उहो तड़ेर के आंख ।सोच समझ के दिहीं जबाब , ना बा कउनो अलग दबाव ।चतुराई से तरकस रखले शान पे बान चलउलस के ,पिछड़ा कह पिछियउलस के । पिछड़ा कह पिछियउलस के ।हम त बिगरल काम बनाईं , पानी पर सेतु पऊड़ाईं ।मोर क्षमता पे प्रश्न तोहार , फिर से तनिका करा बिचार ।सागर के पुरुसारथ अपने अंजुरी से खरकउलस के ,पिछड़ा कह पिछियउलस के । पिछड़ा कह पिछियउलस के ।अवधपुरी के हईं दुलार , काशी मथुरा हवे हमार ।शिल्पकार हम गंगा के , डमरू शिव अड़भंगा के ।केशव के उ चक्र सुदर्शन अंगूरी में पहिनउलस के ,पिछड़ा कह पिछियउलस के । पिछड़ा कह पिछियउलस के ।ना केहुओ से राखी तोड़ , सबका खातिर चार चार गोड़ ।राम के हाथे धनुष थमउली , संसाधन सबका पहुँचउली ।शस्त्र शास्त्र के विद्या हमरै हमहि से लुकवऊलस के ,पिछड़ा कह पिछियउलस के । पिछड़ा कह पिछियउलस के ।केसे केकर रहल लड़ाई , हम ना कबहुँ बैर निभाईं ।हम केकरा के रहीं चुनौती , जे एह गति के हमरो हस्ती ।कहे कथानक जे कथावाचक हमरै कथा छुपउलस के ,पिछड़ा कह पिछियउलस के । पिछड़ा कह पिछियउलस के ।✍ धीरेन्द्र पांचाल