मैं हिंदी हूं...
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Category : Poems
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(१) ओम् ओम् अक्षर अक्षर हैलोक चेतना का साधक मैं,
हिंदी मेरा घर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है ,
शब्द शब्द अम्बर है ।।संबोधन के चित्र हमारे
वर्ण वर्ण अंकित हैं ।
इन संकेतों के अनुभव में
भाषाएं स्थित हैं ।।
क्या विशुद्ध विज्ञान निहित है
हिंदी में अक्षर के ।
जैसे मेरे भाव खड़े हों
मूर्तमान हो कर के ।।
हिंदी में जीवन व्यंजन है
आत्म चेतना स्वर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।1।।
प्राणी विविध भाषणों में
जो उच्चारण करते हैं ।
उसे यथा स्थिति लिखने को
हिंदी हम कहते हैं ।।
हिंदी कृत्रिम रूप नहीं है
भाषाओं के कृति का ।
यह अव्यय संस्कृत की बेटी
अवधारणा प्रकृति का ।।
संस्कार उन्नत जीवन यह ,
भाषा से ऊपर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।2।।
कला कोश की प्रखर वाहिनी
सप्तस्वरा संगीता ।
नव रस नव गति प्रगति पावनी
तुम कल्याणी गीता ।।
छंद तुम्हारे सिखलाते हैं
जीवन में अनुशासन ।
ओज प्रसाद मधुर गुण करते
व्यवहारों को पावन ।।
गीत गीत आबाद तुम्हारे
सामवेद का स्वर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है।।3।।
आत्म चित्र से जन जन में
हिंदी प्रकाश भरती है ।
आत्म मित्र से यह जीवन का
हर विकास करती है।।
कला ,ज्ञान ,विज्ञान समाहित ,
हिंदी के संबोधन ।
करुणा ,प्रेम,प्रणय ,श्रद्धा सब
हिंदी के अंतर्मन ।।
आज किंतु हिंदी जीवन से
हिंदी को ही डर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।4।@सुजान तिवारी समर्थ(२) मैं हिंदी चल पड़ी विश्व को भारत वर्ष मनानेभारत की संस्कृति सुगंध से दुनियां को महकाने ।मैं हिंदी चल पड़ी विश्व को भारत वर्ष बनाने ।।जीवन के आदर्श पंथ में तुलसी के स्वर लेकर ।मैं केशव की रामचन्द्रिका सूरदास का सागर ।।प्रेमचंद की कथा प्रेरणा का संकल्प समाहित ।रश्मिरथी सी राष्ट्र चेतना को करने सम्मानित ।।विश्व वाटिका को मधुराधर कोयल सी चहकाने ।मैं हिंदी चल पड़ी विश्व को भारत वर्ष बनाने ।।नीति रीति के विविध पुष्प की माला बनी हुई हूं।मैं कबीर ,रसखान तथा गिरिधर से सनी हुई हूं ।।प्रेम ,दया ,श्रद्धा ,करुणा के विविध रंग आभासित।मानवता को इनके अंदर किए हुए अनुशासित ।।ॐ एक अक्षर के अंदर अम्बर को दिखलाने ।।मैं हिंदी चल पड़ी विश्व को भारत वर्ष बनाने ।।@ सुजान तिवारी "समर्थ"(३)भ्रमित गुमराह को गंतव्य ,की पहचान हिंदी हैभ्रमित गुमराह को गंतव्य ,की पहचान हिंदी है।भटक कर द्वार आए को ,कहे मेहमान हिंदी है ।सभी खाते सभी जीते ,सभी संघर्ष करते हैं -मगर मन से पराई पीर का अनुमान हिन्दी है ।।सुनिश्चित शब्द हिंदी का , अगर छूती चरण होती ।बढ़ाए तो कदम घुंघरू बंधे तो पग बरण होती ।प्रतिष्ठित चिह्न तो पद हो ,अडाए टांग हो जाए-अविचलित पैर अंगद सी खड़ी प्रतिमान हिंदी है।भ्रमित गुमराह को गंतव्य ,की पहचान हिंदी है ।प्रतिष्ठित सिंधु की बेटी समाहित विश्व की बोली ।सदोचित संस्कारो से विभूषित व्यंजना भोली ।नियत स्थान से उतरी प्रकृति गर्भा स्वरित व्यंजित ।कहे जैसे लिखे वैसे यथोच्चारित तथा अंकित ।।प्रभाकर की प्रभा बनकर जगत को यह जगाती है ।उदित प्रांजल्य अरुणाई विमल संगीत गाती है ।मिला यौवन इसे श्रृंगार का तो रौद्र ने देखा -परम उत्साह वीरों के लिए हनुमान हिंदी है ।।भ्रमित गुमराह को गंतव्य की पहचान हिंदी है ।।@सुजान तिवारी "समर्थ"(४)हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास( वीर गाथा काल )हिंदी का इतिहास बड़ा ही दर्शन है ।यह जीवन के साथ घटित परिवर्तन है ।।कलमकार ने वक़्त नाद को श्रवण किया ।तत्कालीन परिस्थितियों को ग्रहण किया ।।शब्द गढ़े ऐसे कि जिसमें दृष्टि जगे ।अर्थ उठे ऐसे की जिसमें सृष्टि जगे ।।1।।संस्कृत के आबाद शब्द आजाद हुए ।आदिकाल में हिंदी के अनुवाद हुए ।।जैन बौद्ध चारण नाथों ने गीत गढ़े ।।सबने अपने आश्रय के संगीत पढ़े ।।राजाओं की विजय कथा का गान हुआ ।बंदी जन का विरदावली बखान हुआ ।।गोरखनाथ भर्तिहर जैसे सिद्ध हुए ।इनके सब साहित्य विशेष प्रसिद्ध हुए ।।पुष्पदंत जयपाल जैन कृति कार उगे ।रासो के साहित्य वीर उद्गार जगे ।।2।।जगनिक ने आल्हा का सुंदर गान किया ।बरदाई ने पृथ्वीराज बखान किया ।।खुसरो की प्रख्यात पहेली उदित हुई ।विद्यापति की छंदावलि अवतरित हुई ।।इस्लामी संघर्ष कर रहा जन जन था ।आदि काल में हिंदी का अतिरंजन था ।।देश और संस्कृति की रक्षा कौन करे ।कलमकार जब वीर चेतना मौन धरे ?हिंदी में तब मत्तगयंदी तार लगे ।कायर को भी युद्ध जोस साकार लगे ।।3।।@ सुजान तिवारी "समर्थ "(५)तिरस्कृत हिन्द से हिंदी पड़ी है हिन्द सागर में ।तिरस्कृत हिन्द से हिंदी पड़ी है हिन्द - सागर में ।पतोन्मुख अंग सब उसके मगर है जोश अंदर में ।।नहीं जीवन की अभिलाषा ,उसे खुदकी नही आशा ,रही हर वक़्त की वाणी ,प्रभाकर सी जगत त्राणी ,उसे क्यों काल खायेगा ?जलधि में डाल जायेगा ?उठो हे! भरत पुत्र जागो ।सरारत की क्षमा मांगो ।।निकालो सिंधु से गंगा प्रखर संगीत के स्वर में ।तिरस्कृत हिन्द से हिंदी पड़ी है हिन्द सागर में ।बची है आस , कर देखो,उठाये, जोश भर देखो,उसे परवाह भारत है,नही संकीर्ण स्वारथ है,जगत ऊर्जा निहित उसमें,सृजन पुर्जा निहित उसमें,नही विध्वंश का कौरव,समर्पित हिन्द को गौरव।।बचाओ डूबती माता ,प्रलय आतुर समुन्दर में।।सहित रस छंद लय गुण के समन्वित सप्त सरगम में।।तिरस्कृत हिन्द से हिंदी पड़ी है हिन्द सागर में ।पतोन्मुख अंग सब उसके मगर है जोश अंदर में।।@सुजान तिवारी "समर्थ"
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