राफेल की परिचर्चा Read Count : 121

Category : Poems

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राफ़ेल की परिचर्चा में वो चर्चा हमने भुला दिया ।
डाँट  ग़रीबी को हमने भी भूखे तन ही सुला दिया ।

पेट के भीतर जलती रहती  अंगारें  अभिमान में ।
जैसे दिन भर अग्नि जलती रहती है शमशान में ।

हुई जीत  कांग्रेस की चाहे  गई  बीजेपी हार ।
भात बिना भारत का देखो रुका रक्त संचार ।

हम क्या जाने योगी,मोदी,सोनिया मैडम कौन हैं ।
रोटी   पर   परिचर्चा  करने  वाले  मंत्री  मौन  हैं  ।

लाचारी   का  उसके  नेता   पुछ  रहे थे  जात ।
अंतिम इच्छा उसकी केवल माँग रही थी  भात ।

शोर हुए चहुँओर देश में बजे सियासी झाल ।
उसकी  सुनी छाती का ना  पूछे  कोई हाल  ।

जिस भारत की  अंगड़ाई में तड़प रहे नवजात ।
चीन की छोटी आँख पूछती मोदी की औक़ात ।

चुटकी  लेती  इतराती  हैं  मुग़लों  की  शमशिरें ।
दिया सियासी घाव ग़ज़ब की मोदी की तक़दीरें ।

इठलाती चलती हैं देखो ख़िलजी की तलवारें ।
हमको उड़ना सिखलाती  हैं  जापानी हथियारें ।

केवल हमको राष्ट्रहित प्रतिशोध सिखाया जाता है ।
संसद  वाले  साँपों  को  भी  दूध  पिलाया जाता है ।

कर बद्ध निवेदन है मेरा उन मत और मतदाताओं से ।
दूध  पिलाने  वाला हक़ ना  छीन लेना  माताओं  से ।

 ✍✍धीरेन्द्र पांचाल 

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