
श्रृंगार रस
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Category : Poems
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उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊं ,वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली काली ,फूलों की पंखुड़ियों सी उसके अधरों की लाली ।वो जो बादल बन गरजे मैं सावन बन इतराउँ ,लबों को छू कर प्यास बुझे बस यूं ही बरस न पाऊं ।वो हँस कर अपना दर्द छुपाये मैं कैसे सब कह जाऊं ।वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।क़ातिल लगती तीखी आंखों से मीठा आघात करे ,जान भी तब बेजान हो जाये जब वो मुझसे बात करे ।उसकी भींगी जुल्फों से जब छेड़खानी वो वात करे ,लगता कि पांचाल स्वयं ही अपने ऊपर घात करे ।वो अधरों से संघात करे मैं महल पुराना ढह जाऊं ।वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।✍ धीरेन्द्र पांचाल