मेरा वाला रविवार
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Category : Poems
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#मेरा_वाला_रविवारए रविवार सुनो!अब तुम वैसे नहीं आते,वो बड़ा सा दिन अब तुम साथ नहीं लाते।वो दिन , जब तुम्हारा इंतज़ार होता था,तुम्हारे आने पर दिल गुलज़ार होता था,वो सवेरा भी बड़ा खिला खिला लगता था,तब सूरज भी कुछ बड़ा सा दिखता था,जब रसोई से पकवानों की खुशबू आती थी,रजाई गद्दों की तारों पर लाइन लग जाती थी,जब मुंडेर पर अचार की बरनियां दिखती थी,चारपाई पर मसालों की थालियां सजती थी,जब पार्क में चौक्के छक्कों का शोर होता थागेंद गिरने पर नाली में युद्ध घनघोर होता थाजब सहेलियों संग मैं भी ढेरी चटकाती थीऔर एक पूरी फौज मुझ पर गेंदे बरसाती थीजब चूरन वाले अंकल आवाज़ लगाते थेऔर चवन्नी लेने हम घर को दौड़े जाते थेजब फेरी वाला कोई गली में आता थामम्मी और आंटियों का तांता लग जाता थाजब रंगोली के गाने हम दिनभर दोहराते थेरामायण, महाभारत से कर्फ्यू लग जाते थेजब हफ्ते भर बाद एक फिल्म देख पाते थेऔर घर के कमरे पिक्चर हॉल बन जाते थेए रविवार तुम अब क्यूं नहीं वैसे आते?क्यों वो जोश और उमंगे साथ नहीं लाते?रविवार ने हंस कर कहा,मैं आज भी वैसे ही आता हूं,वो खिला सा दिन साथ लाता हूंबस आज कोई मेरा स्वागत नहीं करताआधा दिन तो तुम्हारा बिस्तर में ही कटता,आज तुम सब ने मुझे रेस्ट डे बना दिया हैऔर शनिवार को मेरी जगह बैठा दिया हैशनिवार को ही सारी मस्ती कर लेते होऔर रविवार को बस सोते रहते होमैं आता हूं , तुम्हारा इंतज़ार भी करता हूंपर तुम जब तक उठते होमैं आधा चला जाता हूं..…..रेखा यादव( मेरी कलम से✍️)
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