'मेरा अतृप्त पत्र' (my Unsatisfi Read Count : 84

Category : Poems

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तुम्हारे उदास चहरे पर अटके हुए 
मेरे इन निगाहों से बहते 
बेरंग आंसुओं को रोकने का
मेरे पास भी कोई तोड़ नहीं है
ना जाने क्यों ऐसा है 
ना जाने क्या बात हुई है,

कोई कमज़ोरी घर कर रही है
खुदको किसी मुर्झाए हुए
फूल सा महसूस करती हुई 
हर तरफ बिखर रही है
खुद को अध मरा सा समझती हुई 
हर कहीं थम रही है
कोई कमज़ोरी घर कर रही है
मगर,
मैं इस खालीपन के अंधेरे में 
तुम्हें भटकाना नहीं चाहती 

मैं तो तुम्हारे इंतज़ार में जीना चाहती हुं
तुम्हारे दिल के साये में पलना चाहती हुं 
मगर किसी उम्र के दायरे से डरकर नहीं,
मैं तुम्हारी गोद में अपना दम तोडूं 
बस इसी इक ख्वाहिश में 
जिंदा रहना चाहती हुं..
पर मैं डरती हुं
ना जाने किस बात से 
ना जाने किस एहसास से,
मैं कहीं डरती हुं

देखो ! तुम कहीं खो ना जाना

किसी अनजान से कवि की 
ढेरों कविताओं में से 
कहीं किसी अनकही कविता में 
तुम मुझसे रुठकर कहीं छीप ना जाना

क्योंकि मैं तुम्हें ढूंढते ढूंढते 
अब हारना नहीं चाहती
मैं तुम्हारे साथ जी सकुं या ना जी सकुं
पर मैं बिन तुम्हारे मरना नहीं चाहती!

आद्या✍️❤

Comments

  • सुंदर साहित्य । मुक्तक शैली बहुत अच्छी है

    Feb 08, 2020

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