"वो ख़त वाले दिन " Read Count : 217

Category : Poems

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क्या मैं खत के दिनों में भी ज़िंदा था 

हाँ था शायद पर अब वो मुरझा से गए हैं 

सिलवटें पड़ी हैं उनपर बंद हो गए हैं 

खुरदुरे लकड़ी के बक्सों में 

बस यही पूछता हूँ खुदसे 

क्या मैं तुम में ज़िंदा था 

काश अपनी दोस्ती भी उन दिनों सरीखे जी लेते 

किताबें गिरने उठाने लेने देने के बहाने रिश्ते बना लेते 

कुछ ख़ुशियाँ बाँट लेते 

जज़्बात किताबों में दबाकर दे देते 

पलटते जब उनको 

एहसास की खुशबू से कमरा महकता 

न आवाज़ होती न चमचमाहट 

बस ठंडक होती सहज ही सुकून की 

बड़ा मुश्किल होता है कभी कभी 

हँसता हूँ रोता नहीं हूँ 

वो बहाने जो ज़िंदा किया करते थे रिश्तों को 

मर से गए हैं 

सच कहूँ तो वो बहाने अब कहाँ है बताओ ज़रा 

बहानों की एक लंबी लिस्ट हुआ करती थी 

और उनमें होती थी रिश्ते पनपने की कहानियाँ

वो लौटा दो ज़रा 

आओ हम तुम भी बाँट ले बहाने हज़ार 

कुछ मैं समहालता हूँ कुछ तुम सवांर दो 

जहाँ आँखों से बातें पढ़ ली जाती हों 

जहाँ एक का सुकून दूसरे की कमाई बन जाता हो

लाओ ज़रा वो दिन ढूंढ के ला दो और बताओ ज़रा 

क्या मैं भी ज़िंदा था उन ख़त के दिनों में 

Comments

  • Ramesh Bhupathi

    Ramesh Bhupathi

    👏👏👏👏👏

    Mar 09, 2017

  • Ramesh Bhupathi

    Ramesh Bhupathi

    awesome....

    Mar 14, 2017

  • Shubhangi Ojha

    Shubhangi Ojha

    ryt!!

    Mar 14, 2017

  • Shubhangi Ojha

    Shubhangi Ojha

    ryt!!

    Mar 14, 2017

  • Shubhangi Ojha

    Shubhangi Ojha

    like it

    Mar 14, 2017

  • Shubhangi Ojha

    Shubhangi Ojha

    like it!!

    Mar 14, 2017

  • Mar 12, 2017

  • Mar 09, 2017

  • Mar 10, 2017

  • Mar 10, 2017

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