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हां हम ब्राह्मण हैं और मुझे ब्राह्मण होने पर गर्व है ।परमपिता परमात्मा की असीम अनुकंपा है कि मुझे 8400000 योनियों में सर्वश्रेष्ठ योनि मानव में उत्कृष्ट एवं सर्वश्रेष्ठ कुल ब्राह्मण कुल में जन्म दिया है ।इसलिए परमात्मा को कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूँ।परंतु बेहद अफसोस है कि हम उस कुल में जन्म लेकर भी कर्मच्युत और भ्रष्ट एवं दिशा विहीन होकर अधम की भांति कमजोर एवं निस्सहाय होकर जीवन यापन कर रहे हैं ।यूं तो इस महा कलयुग के प्रभाव से सभी वर्ण कर्मच्युत हुए हैं ,परंतु आज हमारे पास ना तपबल है न हीं शास्त्र बल न हीं नीति ज्ञान ही रहा है ।हम सिर्फ जन्म से ब्राह्मण मात्र रह गए हैं ।                                   आवश्यकता है हम पुनः जागे अपने आप को पहचाने और अपने संतति में ब्राह्मण के कर्म और धर्म को अपनाने के लिए प्रेरित करें ,सुसंस्कृत करें और पुनः मानव जाति के सर्वश्रेष्ठ कुल गौरव को स्थापित कर मानव समुदाय के लिए प्रेरणा एवं आदर्श का प्रतीक बने ।  सर्वप्रथम सभी ब्राह्मण कुल के आदरणीय परम आदरणीय एवं श्रद्धा वक्ताओं से मेरा करबद्ध प्रार्थना होगा कि मांस मदिरा के परित्याग के लिए आंदोलन करें ।सच माने तो जो ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर मांस मदिरा का सेवन व भक्षण करता है ,वेदों की माता गायत्री का जाप नहीं करता है वह ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी नहीं है ।पुरोहित कर्म मैं तल्लीन ब्राह्मण बंधुओं से अनुरोध है कि जानकार कर्मकांड़ी भाइयों से शिक्षा प्राप्त कर सही तरीके एवं अनुशासन से कर्मकांड कराएं। ब्राह्मण की अस्मिता के को बचाएं ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के वास्ते यह अवश्य है कि हम कर्मकांड अर्थात पूजा-पाठ का प्राथमिक ज्ञान होना अनिवार्य है ।ताकि हम नियमित रूप से अपना दैनिक पूजन पाठ कर सकें। पंडित तुलसीदास जी महाराज ने रामचरितमानस में ब्राह्मणों को पृथ्वी का देवता की संज्ञा दिए हैं ,और प्रथम पूजन का अधिकार भी। "बंदौ प्रथम महीपुर चरणा" जिसका अन्य वर्णों के लोगों के द्वारा बराबर आलोचना सुनने को मिलता है कि तुलसीदास ब्राह्मण थे इसलिए ब्राह्मणों की प्रशंसा किए हैं। यद्यपि सच्चाई इसके परे है परमात्मा ने ब्राह्मणों को वह शक्ति और ज्ञान दिया है ,कि ब्राह्मण मंत्र की शक्ति से किसी भी देवता को आवाहन कर ,उनका विधिवत षडशोपचार पूजन कर यजमान की सारी इच्छा एवं कामना की पूर्ति का माध्यम एवं सेतु बनता है ।अनंत कोटि देवता में मात्र सूर्य, चंद्र ,अग्नि, वायु और वरुण देवता ही प्रकट हैं शेष अदृश्य देवताओं को बुलाने की शक्ति सामर्थ्य एवं कौशल ब्राह्मण के पास ही परमात्मा प्रदान किए हैं। इसलिए सम्पूर्ण पृथ्वी पर ब्राह्मणों को सम्मान मिलता था ।  सनातन धर्म के चार स्तंभ हैं ।-  १ गाय  २ गंगा  ३ गीता  ४ गायत्री हम सनातन धर्म के रक्षक हैं अतः हमें गाय की सेवा जरूर करनी चाहिए ।हर एक ब्राह्मण के घर में गंगा जल का कलश होना चाहिए ।हमें नियमित गीता की उपासना एवं गायत्री के मंत्रों का जाप करना चाहिए ,परंतु हम नहीं कर रहे हैं ।जाप करने की बात तो छोड़ीये हमारे बच्चे गायत्री मंत्र को जानते तक नहीं हैं ।गायत्री में हीं ब्राह्मणों की शक्ति थी ,गायत्री के जाप से ब्राह्मण दूसरे का कल्याण करते थे। गायत्री मंत्र से हीं हमारी सम्पूर्ण शक्तियां सिद्ध हो जाती थी ।परिणाम स्वरूप हमारे पूर्वजों में पुरुषों के मुख से निकली हुई वाणी कभी मीथया नहीं होती थी ।फल स्वरुप सभी मानव जाति के लोग ब्राह्मण का सम्मान करते थे। और आपके क्रोध से भयभीत रहते थे। हमने पुरोहित कर्म को स्वीकार किया और निरंतर हित निरंतर परहित पुरोहित के रूप में लोगों का हित करते रहे।  ब्राह्मणों के तीन आदर्श पुरुष हैं।  १ वशिष्ठ जोकि तपोवली परम ज्ञानी एवं ब्राह्मण ईस्ट थे।  तपबल बिप्र सदा बरिआरा। तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा॥  जौं बिप्रन्ह बस करहु नरेसा। तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा॥  तप के बल से ब्राह्मण सदा बलवान रहते हैं। उनके क्रोध से रक्षा करने वाला कोई नहीं है। हे नरपति! यदि तुम ब्राह्मणों को वश में कर लो, तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी तुम्हारे अधीन हो जाएँगे  वसिष्ठ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पुरोहित और कुल गुरु थे।  २ परशुराम भगवान परशुराम के क्षत्रिय बल को कौन नहीं जानता है परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से २१ बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं[2]। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते उनके जाने-माने शिष्य थे -  भीष्म  द्रोण, कौरव-पाण्डवों के गुरु व अश्वत्थामा के पिता एवं  कर्ण।    ३ चाणक्य :- महा ज्ञानी चाणक्य ने अपने अपमान के प्रतिशोध में सत्ता परिवर्तन करा दिए थे ।अहंकारी राजा का सर्वनाश करा दिए थे।चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है।  ज्ञान त्याग और बलिदान ही ब्राह्मण का आदर्श हुआ करता था ।परंतु बेहद अफसोस है कि प्रायः ज्यादातर पुरोहित कार्य में संलग्न हमारे भाई हो या वंशज आधा अधूरा ज्ञान प्राप्त कर खुद अर्ध शक्ति के भागी बन रहे हैं ।हम ब्राह्मण परमात्मा को अति प्रिय हैं हम ब्राह्मण सनातन धर्म के संरक्षक एवं प्रचारक हैं ।हम हिंदू धर्म के प्रतिबिंब एवं मानव जाति के आदर्श रहे, इसलिए हमें अपने संस्कार आचरण व्यवहार एवं कर्म को बचाए रखना होगा ।कलयुग के प्रभाव एवं पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण हम भी प्रभावित हो अपने कर्म से विमुख हुए हैं ।आज हम मांस मदिरा एवं मत्स्य ग्राही हो गये हैं। कर्म कुकर्म आदि का बिना विचार किए हुए सर्वभक्षी हो गए हैं। ब्राह्मण सर्वदा मानव समुदाय के कुछ ना कुछ देता रहा है हमेशा मात्र दर्शन कर उन्हें मुसीबत एवं तकलीफ से निजात व मुक्ति दिलाता रहा है। इसलिए हमेशा ब्राह्मणों की पूजा होती थी। मेरे विचारों में प्रथम देवता हैं और बंदन के अधिकारी हैं ।इसलिए हे कुलश्रेष्ठ ,आप मांस मदिरा का परित्याग करो नियमित गायत्री का जाप करो तपोबल को जागृत करो, अपने आप में ब्राह्मणत्व को पैदा करो फिर संगठित हो परिवर्तन का महानाद की घोषणा करो ,फिर देखो आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है ।हे देव दूसरों के कल्याण के साथ ही साथ अपने उत्थान के लिए भी प्रयत्न करो।  

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