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राज करनेवाले राजही करते है चाहे वह ईमानदारीसे हो या बेईमानीसे क्यों न हो। और राज तो सिर्फ़ जनता पर किया जाता है। क्योंकि जनता की कोई आत्मा नही होती ।क्योंकि वह एक नही होती। वह सदा अपना दिया खुद जलाती नही। वह सुरज नही चांद को महत्त्व देती है। वह शिक्षा नही भक्ति को महत्त्व देती है। वह ईर्शालू है। वह दुरभिमानी है।  वह दिखावे को महत्त्व देती है। वह अहंकारी है इसलिए इक दुसरे से जूड नही पाती है। रिश्तेदारी तो निभाती है;पर रिश्तोंकी अहमियत नही समझती। केकडे की तरह इनकी दशा होती है। जब भी कोई रिश्तेदार या पडोसी आगे बढ़ता है तो या प्रगति करता है तो इनकी ऑखे विस्मयित हो जाती है। जलने की बू आने लगती है। इस ईर्ष्यालु भावना में बहकर वह केकडे की तरह बर्ताव करती है।
वह अशिक्षित है। अर्धशिक्षीत है। वह दुसरों के बकहावे पर विश्वास करती है। क्या सही, क्या गलत इसका अंदाजा करने की अक्ल उसमें होती ही नही और इसलिए वह सदा सलगा नही बन पाती। कम से कम वह अपने लिडरोंको तो पहचान ले ;पर वहाँ भी फेल नजर आती। इसलिए वह जनता है, जो जानती नही EVM और बैलेट पेपर क्या है। क्या फर्क़ है इसमें?
इसने छ. शिवाजी महाराज ,सम्राट अशोक,प्रताप राणा,टिपू सुलतान, राजे संभाजी ,म.ज्योतीराव फुले,  क्रांतीसूर्य डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ,अन्नाभाऊ साठे, भगतसिंह को नही जाना। कल जाना था, आज नही। दाभोळकर , कलबुर्गी,गौरी लंकेश,पानसरे तो इनके दिमाग में ही नही घुसे यह वह जनता है।
उम्मीद करता हूँ कि बस इनको अक्ल आए। वह अपने सही लिडरोंको पहचान ले। एक निशान के निचे आए। जो समता का पुरस्कार करता हो, जो समान शिक्षाकी  बात करता हो,  जो समान औद्योगिक शिक्षण की बात करता हो,जो सामाजिक स्वतंत्रता की बात करता, हो, जो समान न्याय की बात करता हो, जो तुम्हारे प्रगति की बात करता हो ;पर मुखरता नही।  जो अपने भारत की बात करता हो, वही तुम्हारा लिडर है। जो EVM के खिलाफ लढ़ता हो।
‌जो निजिकरण के दुष्परिणाम जानता हो और तुम्हारी आजादी का महत्त्व, वही तुम्हारा अपना है। टाटा,बाटा बिरला, अंबानी, अदानी, सोनी, आदी कई उद्योगपति इस देश में है। वह तुम्हे क्या नौकरियां देगे? साथ साथ इक ऐसी व्यवस्था भी तैयार करेगे की तुम्हारी कोईभी पिढी ना बड़ा अफसर बनेगी और ना खुदका कारोबार कर पायेगी और ना इज्जत से सर ऊंचा करके जी पायेगी। मतलब गुलामों की जिंदगी होगी। सोचो अगर हमें इक स्थान को उंचा करना है या कुछ टिला बनाना है तो  बनाने के लिए हमें कही और जगह खुदाई करनी पडेगी और वहाॅ  की मिठ्ठी उस स्थान पर ले जानी पडेगी। इससे क्या होगा? वह  स्थान उंचा होगा। जोकि इन उद्योगपतियों का हुवा है। 73%देशकी संपत्ति केवल1%लोगोंके पास है। यह परिणाम भारत को और गरिबी की ओर धकेल रहा है।

‌      इस गड्डे की मिठ्ठी जब दुसरे जगह गयी तभी तो टिला बना।जनताका ह़क छिना तभी तो धनवान बना। 73% संपत्ति 1%लोगोंके पास कहासे आयी? धनवान की व्याख्या-वह जो सिर्फ दलाल, जमाखोर, आय से जादा संपत्तिवाले व्यक्ति व्यापारी और कंपनीज
‌ इसलिए अपने आनेवाली पीढ़ियों के लिए खुदको तैयार करे ।अपने जाती, धर्म, वंश,(कैटेगरी) वर्ण,भाषा-बोलिया, प्रदेश, प्रांत को भूल जाईए। शिक्षित बने, सार असार को पहचाने, इक निशान के निचे आवे। यही इकमात्र विकल्प है।

Comments

  • Sep 21, 2019

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