प्रकृति की ओर
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Category : Poems
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है धरा जहा पर हरा भरा
नव जीवन प्रफुल्लित पल पल में
लगता नहीं ये जहा यहाँ ,
है बनता स्वर्ग यह पल पल में !
मैं दूर प्रकृति से कष्टों में,
सुख भौतिकता जहा दिखाती है,
है स्वार्थ भरे इस जग में
न कोयल गीत सुनाती है !
चल रे मन तुझे प्रकृति बुलाती है !
प्रातः पंछी जगाकर बुलाती है ,
हर रात का दिन से मिलकर जाना ;
सर सर हवा झरते झरनों का ,
राग प्रकृति जहाँ गाती है !
चिड़ियाँ जागती और जगाती ,
सूरज स्वर्णिम रंग बिखेरता ;
भौरे कलियों को फूल बनाकर
गज़ल परियों को सुनाती है !
चल रे मन तुझे प्रकृति बुलाती है !
R.k.Tarun.
हर पग पर प्रकृति का रंगमंच है ;
हर कला वह दिखाती है !
चाहे कितना हो दही ये मन
हर मन को सुख दिलाती है !
टिम टिम करते ओस बूंद की
गले किरणों को लगाती है ;
मानो सितारे उतरे उतरे है जग पर
हर मन में प्रेम जगाती है !
चल रे मन .............................!
यहाँ चलें है सुख के लिए मनु
ये विरोध प्रकृति का करती है ;
खुशियों की तलाश लिए ये
दुखों में ही रह जाती है !
सर सर यूँ जब हवा चले
नव रंगों संग नव फ़ूल खिले ;
फिजा में बच्चो का कोलाहल
हर आँगन को मेहका जाती है !
चल रे मन तुझे प्रकृति बुलाती है !
R.k.Tarun.