मजहब ही सिखाता है आप%2 Read Count : 116

Category : Poems

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चाहे आस्था कहो तुम, पर है अफीम जैसा 

मजहब ही सिखाता है आपस मे बैर रखना.. 


मजहब की तालीन देखो, इंसान ही बदल डाले 

धर्मो मे इनको हिन्दू, मुसलमा ही बना डाले.. 


अरे फल से लेकर सब्जी सबका किया है बटवारा, 

इंसानियत को इस धर्म ने ही है मारा.. 


अरे ला मै  तेरी कुरान पढलु,  तू पढ़ले मेरी गीता  -2

हमारी है सलमा और तुम्हारी है सीता -2


मै तेरी मस्जिद जाऊ तू चल मेरे मंदिर अब 

इंसानियत, भाईचारा दिखाते है हम सब.. 


इस आस्था को तुमने, जंजीर बना रखा है. 

ये मजहब, धर्म नहीं किसी का सखा है.. 


इतना करो प्रण तुम, इंसानियत है धर्म अब. 

मिलकर के नया भारत बनाएंगे हम सब.. 


इस आस्था को तुम अब भूल ही जाओ.. 

इस धर्म को छोड़कर इंसानियत को अपनाओ.. 


चाहे आस्था कहो तुम पर है अफीम जैसा 

मजहब ही सिखाता है आपस मे बैर रखना..-2

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