अंधा भविष्य और "मैं" (%E Read Count : 60

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अंधा भविष्य,अंधकारमय लोग, औंधी सोच, बंटी हुई मानवता, बंटा हुआ समाज, झूठी शान में राजनैतिक बहकावे में एक दोसरे के खून के प्यासे लोग, धर्म से बड़ी मानवता है जिसके बगैर किसी की उन्नति संभव नही है।


  • मैं एक #आस्तिक हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, धर्म समाज से हट कर निश्पक्ष न्याय के लिए बोलने वाली लड़ने वाली एक असहाय सोच कभी हिन्दू के नाम पर कभी मुस्लिम के कभी सिख कभी ईसाई के नाम पर मार दी गई शायद मैं संसार की नज़रों में मर चुकी हूं, एक कहानी मात्र रह गई हूं, लेकिन ज़िंदा हूं "मै" क्यों के मैं ही सत्य हूँ और सत्य ही न्याय है, और न्याय प्रियता ही वो मार्ग है जो सीधा है सच्चा है।


मेरी कहानी शुरू होती है उस दौर से जब शायद मैं मानव समाज के साथ संसार मे आया था, मैं निर्जीव था क्युके उस वक़्त भी अंधकार था जब संसार मे मानवता का विस्तार नही था जब संसार में दया प्रेम और सत्य का अर्थात "मेरा" किसी को कोई ज्ञान नही था, फिर सृष्टी के निर्माता ने संसार मे अपने दूत भेजे अपने अवतार अपने नबी भेजे सत्य के विस्तार के लिए न्याय व्यवस्था के लिए 


धीरे धीरे लोगो मे जागरूकता आई मानवता का विस्तार हुआ फिर ईश्वर के संदेशों को पेट भरने का जरिया बनाया गया, समाज को बांटा गया सम्प्रदाय के नाम पर धर्म के नाम पर ज़ात बिरादरी के नाम पर सृस्टि के निर्माता को एक प्रोडक्ट की तरह बांटा गया एक दोसरे को धार्मिक, सामाजिक, अस्तित्व के नाम पर लड़ाया गया दर, दर, मेरी धज्जियां उड़ाई गई, और मानवता से पहले धर्म और समाज को लोगो पर थोपा गया न्याय को बांधकर रखा गया, 


मै ज़िंदा हू मात्र किताबों में कहानियों में गाथाओं में क्युके शासकों ने मुझे बांधकर रखा अदालतों ने मुझे बांधकर रखा मात्र चंद सिक्को के लिए जो संसार मे ही रह जाने वाले है मैं सत्य हूँ मैं अमर हूं मुझसे संसार बाक़ी है मुझसे मानवता जीवित है मैं अमृत हूं फिर भी नालों में बह रहा हूं हा मै सत्य हूँ मैं ह्रदय में हूं मैं सोच में हूं मैं आहत हूं क्युके संसार सो रहा है संसार गुमराह है।

Comments

  • good

    Apr 08, 2019

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