क्या सच है ये के चले ग Read Count : 74

Category : Diary/Journal

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पूछना है तुमसे कुछ किधर हो तुम? 

सबर कर नहीं पा रहा दिल ठहर रहा ,

सवलों के जबाव दो चुप क्यूँ हुए हो तुम ?

क्या सच है ये के चले गए हो तुम ?

हर पल रहा बेहोश मैं मेरी समझ मुझे कह रही ,

थे होश में, हो होश में एक पल में ही बदल गए हो तुम ?

क्या सच है ये के चले गए हो तुम ?

समन्दर मे तन्हा सफर कर रहा मैं मेरे हमसफर ,

कश्ती मेरी मे हल - चल नहीं लहरों में क्या नहीं हो तुम? 

क्या सच है ये के चले गए हो तुम? 

मेरी रूह रही तड़प कोई कशमकश रही पनप, 

मेरे सवलों मे झलक रहा इश्क भीग रही पलक, 

सम्भल नहीं पा रहा दिल मैं उलझता जा रहा , 

रौशनी से गयाब कीये अन्धेरे मेरे इसकदर अपने थे तुम ,

क्या सच है ये के चले गए हो तुम... 

मानो अभी तुम्हें गले लगाया था अभी तो ख्वाबों का घर सजाया था, 

बनाया था तुम्हें ज़िन्दगी का रास्ता हर पल तुम्हें खुद में मिलाया था, 

यकीन नहीं कर रहा यकीन मेरा गले नहीं उतर रहा कड़वा ये सच तेरा , 

कल जिस सफर का वादा कीया मुझे तन्हा कर अब हमसफर नहीं हो तुम,

क्या सच है ये के चले गए  हो तुम... 

मेरी रूह रही चीख है नहीं कोई भीख,

मेरे रब मेरे सब मेरे हक बन गए हो तुम,

कह रहा बहुत कुछ मैं पर क्या सुन भी नहीं रहे हो तुम ?

क्या सच है ये के चले गए हो तुम?

क्या बस लड़ते रहे अब हम? 

क्या बस भागना ही है एक दुसरे से दूर,

गर मेरा मन पूरा तुम्हारा है तो कुछ तुम्हारे मन में भी मेरा होगा ज़रूर? 

क्या बस नफरत याद है वो मुहौब्बत भूल गए हो तुम?

क्या सच है ये चले गए हो तुम?  

आओ ना फिर वैसे ही मुस्कुराओ तुम ,

पकड़ मेरा हाथ वैसे ही नम हो जाओ तुम,

हाँ मलूम मेरे नहीं हो पर तड़प रहे इस दिल को फिर धड़कओ तुम, 

चले जाना वापस पर बस एक पल मेरे फिर हो जाओ तुम,

खुश तुम भी रहोगे मुझे मुस्कुराता देख फिर पूछना खुद से  तुम,

क्या सच है ये चले गए हो तुम?

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