मुझे मेरा घर बता दो
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किलकरिया थीं, हंसी की बहार भी, रौनक भी थी, बस छोटी चार दीवार थीं
उन छोटी चार दीवारों से कहीं दूर, दिखते कई नजारे थे, शायद बड़े-बड़े आशियानों में, बसते खुशियों के फ़साने थे।