तुझे ढुंढा करता हूं %E Read Count : 106

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Sub Category : Relationships

अक्सर मैं तुझे ढुंढा करता हूं।

तेरे उन यादों में खुद-ब-खुद उलझा करता हूं।

जानता हूं कि ये नामुमकिन है,

फिर भी मैं इसे मुमकिन करने में लगा रहता हूं।

ना जाने क्यों अक्सर मैं तुझे ढुंढा करता हूं।।

तेरे ना होने का कोई ग़म नहीं,

फिर क्यों मैं तुझे ढुंढा करता हूं।

अब तो तेरे उन यादों को,

इन पन्नों में समेटा करता हूं।

फिर भी ना जाने क्यों अक्सर मैं तुझे ढुंढा करता हूं।।

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