Kal Kalank Read Count : 110

Category : Books-Fiction

Sub Category : Horror
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भूचालमें जो सलामत मकान रह गए थे,उसमे शैली का भी एक मकान था। शैली उसकी क्लोज फ्रेंड थी। भूचाल के बाद उसने तुरंत शैली के खबर अंतर पूछें , और अगले दिन उसके पास चली आई । दोनो ने एक साथ ही मन्दिर की मूलाकात की । जो बहोत ही प्रीचीन था । भूकंपके बाद जो उथल-पाथल के बाद यह मन्दिर कस्बे से १ कि.मी. दूर  पहाडो मे जमीन के नीचे से उपर आ गया था। जिसका मुख्यद्वार साफ दिखाई दे रहा था।मंदिर के शिलालेख पर कोई गुढलिपि से कुछ संकेत लिखे हुए थे।उस गूढलिपि का अभ्यास करने के बाद शैली को ऐसा लगा जैसे किसी अगम्य काल की घटनाओं के साथ उसका सीधा संबंध था। वह क्या राज जो  उसे अंदरसे जकजोर रहा था। 
सब से छुपा कर उस रहस्य तक पहुंचने का शैली ने फैसला कर लिया।शिलालेखों की लिखावट के दिशा सूचनो से वह मंदिर के भूगर्भ में उतर गई।
सलवार और कुर्ता उसने इसलिए पहन रखा था कि अगर मुश्किल घड़ी में  भागना पड़े तो कोई दिक्कत ना हो।
उसके हाथ में लाइसेंस वाली रिवाल्वर थी। 
और दूसरे हाथ में टॉर्च थी। भूगर्भ में उतरने के बाद शैली को महसूस हुआ कि वह इस जगह से बखूबी पूर्व परिचित थी।
वह बहुत ही विशाल खंड  था । खंड के मध्य में दाएं बाएं बहुत बड़े स्नानागार थे ।और बीच में आने जाने के लिए रास्ता था ,जो आगे चलकर चार पांचपाँवडियों से मिलता था।जो एक बड़े फर्श से जुड़ी हुई थी। फर्श पर  10 फीट के अंतराल के बाद एक बड़ी सी अश्व रथ की मूर्ति थी। पत्थर से बने उस अश्व रथ की आंखें कोई तेजस्वी पदार्थ से बनी हो ऐसे चमक रही थी।
आहिस्ता-आहिस्ता वह चलने लगी हर एक चीज को वह अपनी पैनी निगाहों से देख रही थी।
धीरेसे उसके होठोंसे यह बोल फूट पड़े.. " इस रास्ते पर बहुत सी बार मेरा आना जाना हुआ है।"
मौजूदा भयंकर शांति और सन्नाटा जैसे उसका गला घोट रहा था। वह तेजीसे चलकर फर्श पर आ गई।
जहां पर अस्व-रथ था।
अचानक उसको लगा जैसी कोई खिसियानी हंसी हंस रहा हो। वह अपनी जगह पर ही रुक गई ।पीछे मुड़कर उसने देखा । पहली बार उसको महसूस हुआ कि चंद्रमा की हल्की सी रौशनी जैसी ही रोशनी यहां पहले से मौजूद थी फिर भी उसने अपनी टॉर्च से चारों ओर प्रकाश फेंका।
धीमे धीमे बढ़ती उस हंसी के साथ कई और आवाजे
हाॆल में गूंजने लगी।
वह सतर्क हो गई कुछ कुछ आवाज साफ सुनाई दे रही थी।
ओह... आह.... उंह... !
किसी की दर्दनाक चीखें उसको सुनाई देने लगी।
एक पल के लिए उसको यह भ्रम लगा, पर सच तो यह था कि यह कोई भ्रम नहीं था उस आवाजों को सुनने की वह कोशिश करने लगी।
अब कुछ कुछ उसे साफ सुनाई दे रहा था।
 "बचाओ..!कोई बचाओ मुझे..!कोई निकालो यहां से..! मुझ पर दया करो ..। रहम करो।"
चारों दिशाओं से आ रही उस पर रहम की भीख मांगने वाली आवाजों के साथ एक दर्दनाक चीस उसको सुनाई दी।
 तब जाकर कुछ हल्की-हल्की यादें उसके मस्तिष्क को झकझोरने लगी। फिर उसके सामने एक दृश्य दिखाई दिया।
खाली पड़े स्नानागार में दया की याचना करता हुआ लंबी लंबी दाढ़ी और घने बालो वाला एक बुड्ढा खड़ा कॉंप रहा था। बुड्ढे आदमी के ठीक सामने ही एक राक्षसी मेंढक पागल हो कर उसकी ओर बढ़ रहा था। टेन्सीका दिमाग घूम गया।
"यह सब क्या है ? यह आवाज कुछ जानी पहचानी है। कौन है यह बुड्ढा । और वो दर्दनाक चीज किसकी थी।"
 वह कुछ भी समझ पा नहीं रही थी । पर अब उसके दिल से घबराहट जा चुकी थी। टेंसी ने आगे कदम बढ़ाया। उसने रिवाल्वर को जरा मजबूती से पकड़ा  और आगे कदम बढ़ाया । ओह पर यह क्या है उसका दाया पैर बहुत ही भारी हो गया थाॆ। किसी जहरी जानवर ने कांटा हो ऐसा दर्द होने लगा ।
 उसका जूस्सा कम होने लगा।
उसकी हिम्मत जवाब दे गई। पहली बार उसको महसूस हुआ कि वह कोई बड़ी मुसीबत में फस गई है। वह विचित्र आवाजें अब थम गई थी ।फिर भी उस भयंकर सन्नाटे में वह आवाजों का आभास हो रहा था।टेन्सी ने टॉर्च के प्रकाश में देखा उसके सामने तीन कमरे थे।
दाई और जो खंड था ठीक उसके सामने दूसरा कमरा था और बगल में एक तीसरा कमरा था।
 कुछ फैसला करके टेन्सी कमरे की ओर चलने लगी।
तभी पीछे से "थक ..थक..थक.." किसी के पैरों की आवाज उसको सुनाई दी त्वरित उसने पीछे देखा कोई बाये कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया
वह स्वगत बोली।
" ये जगह बहुत भयानक है"! वह आवाजे मात्र भ्रम नहीं थी।
"कोई तो है यहां पर! कोई तो है"...!
जिस कमरे में जाते हुए किसी को देखा था ,उसी दरवाजे पर टेंसी की आंखें स्थिर हो गई ।तब टेंसी को ऐसा लगा जैसे पीछे से किसी की आंखें उसको नॉच जाने वाली नजरों से देख रही है।
घबराकर उसने पीछे देखा एक बड़ा भालू जैसा प्राणी रक्तिम आंखों से घूरता हुआ तेजी से उसकी ओर बढ़ रहा था। एक पलकी भी देरी किय़े बगैर उसने रिवाल्वरसे उस खूंखार प्राणी पर निशाना लगाकर ट्रिगर दबा दिया। एक बड़ा धमाका हुआ धमाके की आवाज पूरे हॉल में गूंज उठी । मगर गोली का कोई भी असर उस पर न था। और वह आगे बढ़ता जा रहा था। टेन्सीके होंठ फफड़े "इस दरिंदे को तो कोई असर नहीं है !अब क्या करूं!"
पल भर वह अपसेट हो गई ।पर तुरंत उसने दूसरा धमाका किया। बड़े विस्फोट के तहत उसके मुख से राक्षसी हंसी निकली । उस अटहास्यकी की भारी आवाज टेन्सीके सीने में उतर गई । आश्चर्य तो उसे इस बात का था कि वह हंसी कोई जानवर की नहीं बल्कि इंसान की थी.।
बाई और के कमरे का दरवाजा उसके एक धक्के से खुल गया । वह अंदर चली गई। उसके पूरे बदन में भय दाखिल हो चुका था। पीतल जैसी धातु से बना वह दरवाजा बंद हो गया। भयभीत होकर टेन्सी पूरे कमरे को घूर घूर कर देखने लगी । यह वही कमरा था जिसमें कोई घुस गया था। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि यहां पर तो कोई नहीं था । वह एक दीवार के पास चिपकसी गई।
कमरेमे कांस्य औऱ पितलसे बनी नारी प्रतिमाये थी।
उसकी सांसे बहुत धीमी हो गई थी बाहर की आवाजे उसको साफ सुनाई दे रही थी जैसे कोई बड़ा राक्षस अपनी भारी खूखांर आवाज में अटहास्य कर रहा था। वह अटहास्य के भय तले उसका मन और मस्तिष्क दबने लगा था। टेन्सी एक बात समज चूकि थी कि यहां से उसका जिंन्दा वापस लौटना नामुमकिन था.. ।
.....  ......    ....   ...      ...     ....         (क्रमश:)...



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